
देश में मंदी है. सरकार नकार रही है. रविशंकर प्रसाद कह रहे हैं कि फिल्म की टिकट बिक रही है मतलब अर्थव्यवस्था ठीक है. कोई कंक्रीट जवाब नहीं. और जब जवाब नहीं मिलता है तो वित्तमंत्री के पति ही एक लेख लिखकर सारी पोल खोल देते हैं.
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वित्तमंत्री कौन हैं? निर्मला सीतारमण. और उनके पति? परकला प्रभाकर. एक तरफ भाजपा नेता और केन्द्रीय मंत्री कह रहे हैं कि देश में मंदी नहीं है, और दूसरी तरफ परकला प्रभाकर ने आज यानी 14 अक्टूबर को अंग्रेजी के अखबार ‘द हिन्दू’ में लेख लिखा. इस लेख में परकला प्रभाकर ने कहा कि मौजूदा भाजपा सरकार के पास अर्थव्यवस्था को लेकर कोई रोडमैप नहीं है.
लेख का शीर्षक : A lodestar to steer the economy. इस लेख में वित्तमंत्री के पति परकला प्रभाकर ने लिखा है कि भाजपा सरकार को नेहरू की आलोचना करने के बजाय, पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के आर्थिक मॉडल से सीख लेनी चाहिए.
हम इस लेख के कुछ महत्त्वपूर्ण हिस्सों को आपसे साझा करना चाहते हैं. परकला प्रभाकर ने लिखा है,
“एक तरफ तो सरकार आर्थिक मंदी से लगातार मना कर रही है, लेकिन लगातार आ रहे आंकड़े बता रहे हैं कि सेक्टर दर सेक्टर बेहद गंभीर रूप से प्रभावित होते जा रहे हैं.”
इसके बाद प्रभाकर ने जीडीपी के गिरते आंकड़ों और बेरोज़गारी के आंकड़े साझा किये हैं, और कहा है,
“अभी भी इस बात का इंतज़ार हो रहा है कि सरकार के वे प्रयास दिखाई दें, जिनसे अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकता हो. सरकार के पास कोई रणनीति भी है कि अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का सामना किया जा सके, इसके भी साक्ष्य बेहद कम हैं.”
प्रभाकर ने कहा है कि मौजूदा भाजपा सरकार के पास कोई रोडमैप नहीं है कि गिरती अर्थव्यवस्था का कैसे सामना किया जाए? उन्होंने कहा है कि प्रमुख समस्या ये है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने के विचार को भाजपा ने वर्षों से नज़रंदाज़ किया है. जनसंघ के दिनों से ही भाजपा ने नेहरू की समाजवादी राजनीति की आलोचना की. पार्टी की आर्थिक विचारधारा केवल नेहरू मॉडल के विरोध तक ही सीमित रही. उन्होंने आगे लिखा है कि अर्थव्यवस्था पर आएं तो भाजपा की आर्थिक नीति “नेति-नेति” यानी “ये नहीं-ये नहीं” तक सीमित रही, जबकि किसी भी मौके पर भाजपा ने अपनी “नीति” का ज़िक्र नहीं किया.
भाजपा की जिस नीति ने पार्टी को सरकार दी, पार्टी को भारत के राजनीतिक संवाद में केन्द्रीय भूमिका दी, उस नीति का अर्थव्यवस्था से कोई मतलब नहीं रहा है. प्रभाकर ने देश अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पर भी सवाल उठाए हैं. कहा है कि 1998 से 2004 तक देश में नॉन-कांग्रेसी सरकार रही, लेकिन इस दौरान देश की आर्थिक नीति की दिशा में बड़े कदम नहीं उठाए गए.
“पार्टी का इंडिया शाइनिंग कैम्पेन वोटरों को लुभा पाने में असफल रहा. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लोगों को लगने लगा कि सरकार के पास आर्थिक दर्शन और कोई फ्रेमवर्क नहीं है.”
इसी वजह से पार्टी की 2004 लोकसभा चुनाव में हार हुई. लेकिन प्रभाकर ने ये भी बताया है कि पार्टी के मौजूदा नेतृत्त्व को इन बातों के बारे में अच्छे से पता है. मौजूदा नेतृत्त्व ने बेहद चालाक तरीके से सरकार के अर्थव्यवस्था के एजेंडे को मौजूदा लोकसभा चुनाव के कैम्पेन के समय सामने नहीं रखा, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रवाद और खांटी राजनीति को कैंपेन के केंद्र में रखा.
इसके बाद वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के पति परकला प्रभाकर ने 1991 की नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों का उल्लेख किया. कहा कि इन नीतियों की उसके बाद की सभी सरकारों – चाहे वो किसी के भी सहयोग से बनी हों – ने तारीफ की है. लिखा है कि कांग्रेस सत्ता में आई तो नेहरू की आर्थिक चेतना को जिलाने का प्रयास किया, लेकिन नरसिम्हा राव के साथ के बिना. यहीं पर इसका ज़िक्र भी ज़रूरी है कि कांग्रेस ने मनमोहन सिंह का सहारा लिया. उन्हें 2004 में भारत के प्रधानमंत्री का पद दिया.
प्रभाकर ने कहा है कि भाजपा नेहरू की आर्थिक नीतियों की आलोचना करती है, नेहरू के आर्थिक ढाँचे का विरोध करना भाजपा ने रोका नहीं है. वक़्त रहते अगर भाजपा राव-सिंह के आर्थिक एजेंडे की सहायता ले लेती या उसे अपना ही लेती, तो भाजपा को इस मोर्चे पर सफलता मिल सकती थी. लेकिन भाजपा ने अभी तक उस आर्थिक ढाँचे को न तो चुनौती दी है, न तो उसे नकारा है. अगर भाजपा अभी भी आक्रामक तरीके से इस आर्थिक नीति को अपना लेती है तो ये नरेंद्र मोदी सरकार की उपलब्धि ही होगी कि देश की अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आ जाएगी.
परकला प्रभाकर आंध्र प्रदेश सरकार के संचार सलाहकार रह चुके हैं. लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के फेलो रह चुके हैं. इंटरनेट पर मिल रही जानकारी के मुताबिक़, परकला प्रभाकर का पूरा परिवार नरसिम्हा राव का करीबी रह चुका है. परकला प्रभाकर की मुलाकात निर्मला सीतारमण से जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान हुई. दोनों की शादी 1986 में हुई. निर्मला का झुकाव भाजपा की तरफ और परकला प्रभाकर का झुकाव कांग्रेस की पॉलिटिक्स की तरफ रहा. प्रभाकर आर्थिक मुद्दों पर लम्बे समय से लिखते रहे हैं.
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